आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा समीक्षा लेखन का प्रारम्भ सन् 1903 से प्रारम्भ होता है। उनकी पहली समीक्षा सन् 1903 में अंग्रेजी भाषा में लेखन से प्रारम्भ होती है। उनकी यह समीक्षा हिन्दी के कतिपय छायावादी कवियों के लेखन से सम्बद्ध है। इस निबन्ध का शीर्षक है-Some bad traits of modern Hindi writer.
यह लेख सन् 1903 में ही 'हिन्दुस्तान रिव्यू' में छपा था ततश्च उन्होंने हिन्दी भाषा में सन् 1904 से लेकर सन् 1918 तक सरस्वती, आनन्द कादम्बिनी एवं नागरी प्रचारिणी पत्रिका में कई लेख लिखे और हिन्दी निबन्ध लेखन की एक परम्परा प्रवाहित कर दी। इन निबन्धों का सम्बन्ध हिन्दी की व्यावहारिक तथा सैद्धान्तिक समीक्षाओं से है। इसी कालखण्ड में उनकी व्यावहारिक समीक्षा से सम्बद्ध सबसे महत्वपूर्ण लेख-गोस्वामी तुलसीदास और लोकधर्म-काशी नागरी प्रचारिणी से सन् 1999 से प्रकाशित हुआ। इसी वर्ष अर्थात् सन् 1999 में ही गोस्वामी तुलसीदास पर उनकी कृति गोस्वामी तुलसीदास भी प्रकाशित हुई। इसी प्रकार, 'त्रिवेणी' संकलन से सम्बन्धित उनके दो लेख इसके पूर्व प्रकाशित हो चुके थे-महाकवि सूरदास और मलिक मुहम्मद जायसी ये लेख सन् 1924 तथा 1939 में लिखे गये थे।
इन तीनों लेखों को एक साथ संकलित तथा सम्पादित करके सन् 1943 में इसे काशी नागरी प्रचारिणी की ओर से 'त्रिवेणी' नाम से प्रकाशित कराया। इनके इन निबन्धों की शैली वैयक्तिकता, स्वच्छन्दता तथा हृदय-पक्ष का भावात्मक आग्रह इन तीन तत्त्वों से समन्वित है। निबन्धकार के इस संचयन में चयन का आधार उत्कृष्टता न बनाकर काल की दृष्टि से ज्येष्ठता का चयन किया गया और क्रमशः महाकवि जायसी, महाकवि सूरदास तथा गोस्वामी तुलसीदास क्रमबद्ध रूप से यहाँ रखे गये।
त्रीवेणी । Triveni
Aacharya Ramchandra Shukl