मेरी पहली किताब 'नमक स्वादानुसार' को आपने बे-इंतहा मुहब्बत, इज्जत और दुलार बख़्शा। अब 'जिंदगी आइस पाइस' भी उसी ख़ुदगर्ज़-सी आरजू में आपके सामने हैं। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं रातों-रात एक घोषित लेखक हो जाऊँगा। एक अदनी-सी किताब के लिए लगभग हर हिंदी-अंग्रेजी अख़बार, मैगजीन्स और यहाँ तक कि टीवी पर भी जगह पाऊँगा।
मेरे लिए यही बहुत था कि इक्का-दुक्का लोग फोन पर या मेल पर मेरी तारीफ़ में चंद ईमानदार लफ़्ज़ कह दें। बेस्ट सेलर, पॉपुलैरिटी, सेल के नंबर्स, ताम-झाम, राजमटाज़ और आल-दैट-जैज तो बहुत दूर की कौड़ी थी। पर जितना कुछ मिला, उससे इतना अभिभूत हूँ कि हिया जुड़ा गया 1
लिखना मेरे लिए बस रोमैंटिसाइज़ करना भर रहा है। हाँ ! ये अलग बात है। कि ये रोमैंस मैंने पूरी शिद्दत से किया और अभी तक कर पा रहा हूँ। स्मार्टफोन, ई-मेल, मीटिंग्स, लैपटॉप और एम्बिशन के मकड़जाल में रोजगार बुनते-बनाते और पूरी तरह प्रोफेशनलिज़म निभाने की क़वायद के बीच, जब भी समय मिला, लिखता रहा। सुधारता रहा। पढ़ता रहा और सीखता रहा। ऐसे में अक्सर ख़ुद के लिखे को परफेक्ट बना लेने की ख़्वाहिश ऑब्सेशन में बदलने लगती है। उससे जूझता भी रहा।
नमक स्वादानुसार | Namak Swadanusar
Nikhil Sachan