समय-समय पर लिखे गये व्यंग्य संग्रहित कर इन्हें 'पोथी' का रूप दिया है मैंने। कुछ ताज़े कुछ गत वर्षों में लिखे गए हैं पर यकीन मानिए उनकी प्रासंगिकता आज भी उतनी ही बनी हुई है।
समाज में घटित नित नई छोटी-बड़ी घटना-दुर्घटना तन-मन को झकझोरती है और व्यंग्य बड़े ही हल्के- फुल्के अंदाज में कलम से निःसृत होने लगता है।
हमारे आस-पास, घर-परिवार, समाज की समस्याओं, विडम्बनाओं पर लिखे मेरे मन के ये उद्गार आपको कितना प्रभावित करते हैं। आपके मनोरंजन के साथ-साथ आपको कुछ सार्थक सोचने पर कितना मजबूर करते हैं ये आपकी प्रतिक्रिया से ही ज्ञात हो सकेगा। तभी मेरे इस 'पोथी' प्रकाशन अभियान की सार्थकता सिद्ध होगी अन्यथा
बिन पोथी सब सून............
बिन पोथी सब सून | Bin Pothi Sab Soon
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Nilima Tikku
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