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हमारी संस्कृति हमारे देश की आत्मा है, हमारे जीवन के अनन्त प्रभाव का अनन्त निचोड़ है जिन्हें अभिव्यक्ति के विभिन्न माध्यमों ने समृद्ध किया। जैसे-बोली, भाषा, कलाएँ, गान विद्या, विचार व्यवहार, विश्वास !

भारतीय संस्कृति की जड़ें इतनी गहरी हैं कि परिवर्तन के हर युग में अपने मूल स्वरूप को किसी-न-किसी रूप में सुरक्षित रख सकी है, फिर चाहे वह आज भी पूजित उच्चारित वैदिक ऋचाएँ हों या हमारा जीवन दर्शन समाहित किये हुए लोकगीत, लोककथाएँ या कहावतें।

अनुभवों की कसौटी पर रची सीख उदारता के साथ अग्रिम पीढ़ी को सौंपना, यह सत्कृत्य हमारे पूर्वज अनन्त काल से करते आये हैं-हमारा संवर्द्धन करने के लिए, हमें चैतन्य बनाये रखने के लिए।

अवधी, भोजपुरी, बुन्देली, रुहेली, ब्रज, कौरवी, मैथिली, मगही, बैसवारी, बघेली, निमाड़ी आदि सभी बोलियों की समृद्ध धरोहर ही वास्तव में भारतीय मूल संस्कृति का उत्स है।

ब्रज भाषा का लालित्य तो किसी से छिपा नहीं, यहाँ की रज-रज में ऐसा माधुर्य है, लोकगीतों की ऐसी रसगागर है जिसका वैभव अल्हड़ मस्ती से सराबोर छलकता ही रहता है। कौरवी बोली, उत्तर प्रदेश की पश्चिमी बोली है और वर्तमान हिन्दी की मूलाधार है।

ब्रज व कौरवी लोकगीतों में लोकचेतना । Brij V Kauravi Lokgeeton Mein Lokchetna

SKU: 9789390678808
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  • Dr. Kumar Vishwas

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