रीति सिद्ध कवि बिहारी की सतसई में जीवन के विविध पक्षों की कलात्मक व्याख्या है। भक्ति- नीति-शृंगार की सजल त्रिपथशा मन के अंतर- प्रांतर को अतल गहराई तक आप्लावित करने में समर्थ है। यही कारण है कि बिहारी के दोहे आज भी प्रासंगिक और लोकप्रिय हैं। वस्तुतः राज्याश्रय में रहते हुए भी बिहारी की काव्य-चेतना काराओं में बँधी हुई नहीं है। इसलिए बिहारी सच्चे अर्थों में कवि हैं। सात सौ से अधिक दोहों की रचना सामान्य कार्य नहीं है, फिर उसमें यथार्थबोध 'सोने में सुहागा' जैसी उक्ति को सार्थक सिद्ध कर देता है। निस्संदेह बिहारी का काव्य वैभव अनुपम और अद्वितीय है।
प्रस्तुत पुस्तक में बिहारी सतसई से लगभग पिचहत्तर दोहे चयनित किए गए हैं। नीति-भक्ति और शृंगार के संकलित दोहों में विषय बोध की सरलता का विशेष ध्यान रखा गया है साथ ही दोहों का सरलार्थ भी किया गया है ताकि कथ्य भली भाँति स्पष्ट हो सके।
कविवर बिहारी के दोहों में जयपुर की रसगंध भी है। आमेर में संग्रहालय में बिहारी सतसई की पाण्डुलिपि तो सुरक्षित है ही, एक मंदिर भी है। मिर्जा राजा जयसिंह के आश्रय में बिहारी ने अनेक कालजयी दोहों की रचना की है।
सम्पादित कृति का मूल आधार जगन्नाथ दास रत्नाकार कृत 'बिहारी रत्नाकार' है।
कविवर बिहारी के ऐसे सरस दोहों का संकलन, जिन्हें पढ़कर आप रसानुभूति तो करेंगे ही, साथ ही अंतर्तृप्ति का भी अनुभव करेंगे.... अनवरत पठनीय, उद्धरणीय और संग्रहणीय कृति...
बिहारी के सुबोध दोहे । Bihari Ke Subodh Dohe
Preetam Prasad Sharma