वैशाली की नगरवधू, वयं रक्षामः, सोमनाथ जैसे कालजयी उपन्यास लिखनेवाले हिन्दी के प्रख्यात लेखक आचार्य चतुरसेन का यह उपन्यास राजनीति की पृष्ठभूमि पर लिखा गया है। राजनीति में लोकप्रियता का लाभ उठाकर शीर्ष पर पहुँचना कोई नयी बात नहीं है। कितनी बार देखा गया है कि अपने निजी स्वार्थों के लिए आम जनता को प्रभावित कर अयोग्य लोग सत्ता में अपनी जगह बना लेते हैं और जमीनी संघर्ष से उभरने वाले योग्य जननेता कुछ हासिल नहीं कर पाते हैं। बेहद लोकप्रिय लेखक आचार्य चतुरसेन का उपन्यास बगुला के पंख एक ऐसे ही चरित्र की पहचान कराता है जो सत्ता का उपयोग निजी सुखों और वासना के लिए तो करता ही है, साथ ही देश और समाज के लिए संकट भी उपस्थित करता है। आज जब राजनीति और समाज में ऐसे चरित्र अक्सर दिखाई पड़ते हैं तब यह उपन्यास इस प्रवृत्ति की पहचान के कारण और भी प्रासंगिक हो जाता है। ऊपर से साफ, शफ्फाफ दिखाई देते इन उजले चेहरों के नकाब उघाड़ना इस उपन्यास को महत्त्वपूर्ण बनाता है।
बगुला के पंख | Bagula Ke Pankh
Aacharya Chatursen