उद्धवजी ! हम किसी भी प्रकार मर कर भी, उन्हें भूल नहीं सकती। उनकी वह हंस की सी सुन्दर चाल, उन्मुक्त हास्य, विलासपूर्ण चितवन और मधुमयी वाणी ! ओह! उन सबने हमारा चित चुरा लिया है, हमारा मन हमारे वश में नहीं है, अब हम उन्हें भूलें भी तो कैसे ? "हमारे प्यारे श्रीकृष्ण ! तुम्हीं हमारे जीवन के स्वामी हो, सर्वस्व हो । प्यारे ! तुम लक्ष्मीनाथ हो तो क्या हुआ ? हमारे लिये तो ब्रजनाथ ही हो। हम ब्रजगोपियों के एक मात्र तुम्हीं सच्चे स्वामी हो ।
श्याम सुन्दर! तुमनें बार बार हमारी व्यथा मिटायी हैं, हमारे संकट काटे हैं। गोविन्द ! तुम गौओं से बहुत प्रेम करते हो। क्या हम गौएँ नहीं हैं? तुम्हारा यह सारा गोकुल जिसमें ग्वालबाल, पिता, माता, गौएँ और हम गोपियाँ सब कोई हैं- दुःख के अपार सागर में डूब रहा है। तुम इसे बचाओ, प्राणनाथ ! आओ हमारी रक्षा करो। "
भागवत के अनमोल बोल | Bhagwat Ke Anmol Bol
Hari Singh