शैक्षिक, सामाजिक एवं व्यावहारिक, सभी स्तरों पर ज्ञान के उच्चतम स्तर को स्पर्श करने के साथ ही संगीत, अभिनय, व्यायाम और खेल-कूद जैसी रचनात्मक गतिविधियों में भी समान रूप से दखल रखने वाले तथा सम्पूर्ण विश्व में हिन्दू धर्म एवं संस्कृति की पताका फहराने वाले स्वामी विवेकानन्द की 150वीं जयन्ती के वर्ष में उनके जीवन के महत्त्वपूर्ण उल्लेखनीय प्रसंगों का समावेश करते हुए किसी नाट्यकृति का प्रकाशन न केवल लेखक, पाठक और प्रेक्षक वर्ग के लिए महत्त्वपूर्ण उपलब्धि ही है, बल्कि नाट्यजगत् की अमूल्य थाती भी है । इस महती कार्य हेतु नाट्यलेखक उमेश कुमार चौरसिया निश्चय ही साधुवाद के पात्र हैं। पहला लघु नाटक 'मेधावी नरेन्द्र' जहाँ एक ओर अपने नाम की सार्थकता को सिद्ध करते हुए विवेकानन्द की प्रखर बुद्धि व चिन्तनशीलता को पाठकों के समक्ष रखता है, वहीं दूसरी ओर नरेन्द्र के बाल्यकाल के प्रेरक व रोचक प्रसंगों के समावेश के साथ सही अर्थों में एक मंचीय, मनोरंजक बाल नाटक की कमी-पूर्ति भी करता है । इस लघु बाल नाटक में कुल छः दृश्य हैं जो नरेन्द्र के बालमन की स्वाभाविक जिज्ञासा, उनकी उदारता, निडरता, विनोदी स्वभाव, बुद्धिमत्ता, आत्मविश्वास, माता-पिता एवं शिक्षक के प्रति अपार श्रद्धा, दृढ़ता एवं सत्यप्रियता जैसे उन चारित्रिक गुणों से परिचित कराते हैं, जो उन्हें आगे चलकर विवेकानन्द के रूप में प्रतिस्थापित करने में सक्षम हुए ।
मेधावी नरेन्द्र । Medhavi Narendra
Umesh Kumar Chaurasiya