मेरा कुछ सामान – गुलज़ार बहुत छोटी-छोटी बातें होती हैं- रोटी, तवा, धुआं, पट्टी, कोहरा या पानी की एक बूंद | लेकिन, उनके बडेपन की तरफ कोई हमें ले जाता है, तो हम अनायास ही एक ताल से ऊपर उठ जाते हैं, नितांत निर्मल होते हुए| गुलज़ार की शायरी इसी निर्मलता की तलाश की एक शीश जान पड़ती है | वे बहुत मामूली चीजों में बहुत खास तरह से अभिव्यक्त होते हैं | उदासी, ख़ुशी या मिलन-बिछोह अथवा बचपन... लगभग सभी नितांत निजी इन स्पर्शों को वे शब्दों के जरिये मन से मन में स्थान्तरित करने की क्षमता रखते हैं | एक विशेष प्रकार की सूमनियत के बावजूद ये विराग में जाकर अपना उत्कर्ष पते हैं | इसलिए उदास भी होते हैं तो अगरबत्ती की तरह ताकि जलें तो भी एक खुशबू दे सकें औरों के लिए | गुलज़ार की यह साडी मोलिकता और अपनापन इसलिए भी और-और महत्त्वपूर्ण जन पड़त है क्योंकि वे अपनी संवेदनशीलता और शब्द फिल्मो में लेकर आए हैं | बेशुमार दोलत और शोहरत की व्यवसाहिक चकाचोंध में जहाँ लोकप्रियता का अपना पैमाना है, वहां साहित्य की संवेदनात्मक, मार्मिक तथा मानव ह्रदय से जुड़े हर्ष-विषाद की जैसे काव्यात्मक अभिव्यक्ति गुलज़ार के हाथों हुई, वह अपने आप में एक अविद्तियता का प्रतीक बन गई है |
मेरा कुछ सामान | Mera Kuch Saman
Gulzar