बौद्धिक प्रगति के वर्तमान वैज्ञानिक युग में पारलौकिक शक्तिसम्पन्न पौराणिक चरित्रों और अवतारों तक को मनुष्य के रूप में प्रस्तुत करने की एक परंपरा-सी चल पड़ी है । यथार्थ के आग्रही रचनाकार ऐसी देवी विभूतियों को सहज मानवीय कमियों-कम- जोरियों के सहित चित्रित करने का साहसिक कार्य कर रहे हैं। इसमें संदेह नहीं कि महामानव और आदर्श मानव के रूप में चित्रित ऐसी दिव्य विभूतियाँ मानव मात्र के लिए अजस्र सद्प्रेरणा स्रोत हैं । परंतु मेरी दृढ़ धारणा है कि जीवन का चरम पुरुषार्थ मोक्ष को मानने और उसकी वांछा रखनेवाला आस्तिकबुद्धि-सम्पन्न ईश्वरवादी ही अवतारतत्व को ठीक-ठीक समझ सकता है। मेरी यह पुस्तक विशेष रूप से इन्हीं लोगों के लिए है, जो श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम तो मानते ही हैं, उन्हें पूर्ण ब्रह्म का अवतार भी समझते हैं । अवतार सहृदय की भावभगति का आश्रय होता है, जिसके चरित्र के लौकिक तथा पारलौकिक दोनों पक्ष भक्त के भावाभ्यास का ही नहीं प्रत्युत उसकी अनुभूति और चेतना
के भी अंग बनते हैं, क्योंकि भक्त भगवान् को 'कतु अकतु अन्यथा कतु' मानता है।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम | Maryada Purushottam Bhagwan Ram
Jayram Mishr