कर्ण एवं अर्जुन का युद्ध देखने के लिए देवता, दानव, गन्धर्व, नाग, यक्ष, यक्षी, वेदवेत्ता महर्षि, श्राद्धन्नभोजी पितर तथा तप, विद्या एवं औषधियों के अधिष्ठाता देवता नाना प्रकार के रूप धारण किये अन्तरिक्ष में खड़े थे। ब्रह्माजी तथा भगवान् शंकर भी दिव्य विमानों में बैठकर वहाँ युद्ध देखने आये थे। देवताओं ने ब्रह्माजी से पूछा- 'भगवन्! कौरव और पाण्डव पक्ष के इन दो प्रधान वीरों में कौन विजयी होगा? देव! हम तो चाहते हैं इनकी एक सी ही विजय हो । कर्ण और अर्जुन के विवाद से सारा संसार संदेह में पड़ा हुआ है। प्रभो! आप सच्ची बात बताइये, इनमें से किसकी विजय होगी?'
यह प्रश्न सुनकर इन्द्र ने देवाधिदेव पितामह को प्रणाम किया और कहा- 'भगवन्! आप पहले बता चुके हैं। कि श्रीकृष्ण और अर्जुन की ही विजय निश्चित है। आपकी वह बात सच्ची होनी चाहिये। प्रभो! मैं आपके चरणों में प्रणाम करता हूँ, मुझ पर प्रसन्न होइये।' इन्द्र की प्रार्थना सुनकर ब्रह्मा और शंकरजी ने कहा— 'देवराज! महात्मा अर्जुन की ही विजय निश्चित है। उन्होंने खाण्डव वन में अग्निदेव को तृप्त किया है, स्वर्ग में आकर तुम्हें भी सहायता पहुँचायी है। अर्जुन सत्य और धर्म में अटल रहने वाले हैं, इसलिये उनकी विजय अवश्य होगी, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। संसार के स्वामी साक्षात् भगवान् नारायण ने उनका सारथी होना स्वीकार किया है, वे मनस्वी बलवान, शूरवीर, अस्त्र विद्या के ज्ञाता और तपस्या के धनी हैं। उन्होंने धनुर्वेद का पूर्ण अध्ययन किया है। इस प्रकार अर्जुन, विजय दिलाने वाले सम्पूर्ण सद्गुणों से युक्त हैं, इसके अतिरिक्त, उनकी विजय देवताओं का ही तो कार्य है।
महाभारत के श्रीकृष्ण | Mahabharat Ke Shri Krishna
Hari Singh