यह औपन्यासिक कृति "यात्रा के ईश्वर" जीवन की यात्रा वृतांत को चकित कर देने वाले सौन्दर्य में परिवर्तित कर पाठक
के मन में ईश्वरीय स्वर को झंकृत करती है। तीर्थयात्रा, मृत तथ्यों का संग्रह नहीं बल्कि जीवन से भरा उल्लास है। संशय और दुविधा में फंसा आम आदमी तर्क को छोड़कर आस्था के द्वार पर खड़ा होकर यात्रा की अनिवार्यता में अपने जीवन के हाहाकार को शांत कर देना चाहता है। उस क्षण में मानवीय अस्मिता का अनुपम रूपांतरण ईश्वरीय गंध से ओत-प्रोत होकर शब्दों के माध्यम से मुस्कराता है। यह हंसी- मुस्कराहट इस उपन्यास की आत्मा हैं।
यह कथा परत-दर-परत तीर्थ के सौन्दर्य को निखारते हुए मानव मन के भावों को उजागर कर सुखद अनुभूति प्रदान करती हैं। मानवीय भावों की अलग-अलग कहानियों को मणियों की तरह पीरो कर माला बना दी, जिसे पढ़कर अनचीन्हें अनगढ़ पाप तथ्यों को नष्ट कर देने की शक्ति गुंजायमान होती हैं।
उपन्यासकार ने नदी की मंदिम बहती निरंतर धारा की तरह शब्दों को बांधकर बिम्बो के माध्यम से वो सब बातें कथा में समाहित की हैं, जो एक औपन्यासिक कृति को सम्पूर्ण बनाती हैं।
यह कृति यात्रा वृतांत के गुणों को समाहित कर अपनी विशिष्ठ भाषा शैली एवं शिल्प के कारण पठनीय है।
- डॉ. रमाकांत शर्मा
यात्रा के ईश्वर | Yatra Ke Ishwar
Purushottam Pomal