अंग्रेजी संरक्षण के समय राजस्थान की परम्परागत सामन्ती व्यवस्था के अन्तर्गत कुलीन स्त्रियों को विभिन्न क्षेत्रों में वर्चस्व प्राप्त था। अंग्रेजी प्रशासकों ने राजमाताओं, रानियों एवं ठकुरानियों की राज्य कार्यों के संचालन एवं नियन्त्रण करने की नीतियां अपताई। उनकी आर्थिक स्वायत्तता पर नियन्त्रण स्थापित करके उन्हें अंग्रेज अधिकारियों पर निर्भर रहने के लिये विवश किया। शासकों के चरित्रिक निर्माण के लिये उन्हें पश्चिमी वातावरण में रखा गया, जिसका कालान्तर में प्रभाव यह हुआ कि पुरानी पद्धति पर प्रशिक्षित महिलाओं की सामाजिक स्थिति भी खराब हो गई।
स्त्रियों की स्थिति को गिरा हुआ सिद्ध करने के लिये कुछ दोषपूर्ण प्रथाओं के व्यापक प्रचलन की बात कही गई। यद्यपि वे तर्क और आंकड़ों से यह सिद्ध नहीं कर पाए । स्वतः समाप्त होती जा रही सती प्रथा समाप्त करने को श्रेय लिया गया और वर्ग विशेष तक सीमित कन्यावध के सम्बन्ध में विरोधी तर्क दिये गये और 20वीं सदी के अन्त तक उसे समाप्त मान लिया गया जबकि ये महिला पुरुष अनुपात पूर्व की भांति ही रहा। पुराने मूल्यों को खण्डितदा करके दायित्वहीन शासक वर्ग की विलासिता और स्त्रियों की शोचनीय स्थिति की ओर अंग्रेज प्रशासकों ने ध्यान ही नहीं दिया। फलतः सामाजिक संरचना में विभिन्न वर्गों की स्थिति में अपेक्षाकृत गिरावट आती गयी।
सामन्ती निषेधों की पराधीनता में शोषित स्त्रियों को दोहरे-तीहरे स्तर पर परतंत्रता से मुक्त होने को संघर्षरत होना पड़ा और ऐसे में 1949 के बाद ही राजस्थान में महिला समाज की दृष्टि से आधुनिक युग का प्रारम्भ हुआ।
राजस्थान में स्त्रियों की स्थिति । Rajasthan Mein Striyon Ki Stithi
Dr. Santosh Yadav