राजस्थानी काव्य तो जगत चावो है, देस विदेस री चणी खरी भासावां में राजस्थानी काव्य सूं अनुवाद व्हियो है पण गद्य साम्हो ध्यान ही नीं दीघो, ई वास्ते राजस्थानी गद्य रा गुण लोगां री जांण में आणां चावै जस्या आया नीं।
राजस्थानी में तीन भांत री वातां व्है। एक तो गद्य में, दूजी पद्म में, तीजी भांत हरी वातां गद्य-पद्य मिल्योड़ी है। वातां भांत-भांत रा विसय माथै लिख्योड़ी है। देवी देवतां, परव तिंवार, भूत प्रेतां री। सिकार माथै घणी वातां, सूर ना'र रा झगड़ां री, सिकार कतरी भांत री व्है, कियां करीजे यो वरणन यां वातां में घणां विस्तार सूं कह्यगेड़ो है। सूर ने एक सूरमा रो प्रतीक मान सूर अर भंडण री बातचीत में एक वीर पुरस रा मन री, इच्छा री अर विचारां री तसवीर सी खेंची है। धाड़ायतियां री हिम्मत री वातां, चोर अर ठगां री चतराई री वातां घणी सुहावणी है। चोर अर ठगां कसी-कसी सफाई सूं आप री कळा रा हाथ बताया, घणी रोचक है। अकेला खापरिया चोर री घणी वातां लाषै। एक सूं एक बढ़िया चालाकी अर चोरी री तरकीबां री।
राजस्थानी लोक गाथा। Rajasthani Lok Gatha
Rani Laxmi Kumari Chundawat