भगवान् श्रीकृष्ण अध्यात्ममागियों और साहित्यकारों दोनों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय रहे हैं। वह षोडशकलायुक्त पूर्ण ब्रह्म के अवतार हैं तथा उनका व्यक्तित्व ज्ञान, भक्ति और योग तीनों का लोकातीत समुच्चय है । यही कारण है कि समुद्र की तरह विशाल और गहरी भारतीय संस्कृति में अनेक पयस्विनियों की भाँति प्रवाहित विभिन्न पंथों के परमार्थ पथिक श्रीकृष्ण चरित्र के प्रति समान रूप से आकर्षित होकर उन्हें अपना जीवन सर्वस्व समझते रहे हैं। दूसरी बोर कवियों- साहित्यकारों के प्रबल आकर्षण का कारण है, उनके चरित्र में मानव की निम्नगा और ऊर्ध्वगा वृत्तियों का ऐसा अद्भुत संश्लेषण कि जिससे दोनों स्वरों पर संचरित होने वाली भावनाएं समान रूप से परितृप्त होती हैं । माखनचोरी और अखिल सृष्टि-संचालन, रासलीला और योगसाधना, विलासमय कौतुक और अश्वों की वल्गा अर्थात् परस्पर विरोधी अंतर्वत्तियों के रसात्मक समंजन से प्राप्त ऐसा मनस्तोष अन्य किसी चरित्र द्वारा कहाँ संभव है ?
लीला पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण | Leela Purushottam Bhagwan Shri Krishan
Jayram Mishr