मन में जब आश्चर्य पैदा होता है तब नींद काफूर हो जाती है। प्रतीक्षा करते-करते दूसरा प्रहर भी पूरा हो गया और तीसरे प्रहर का आधा भाग भी बीत चुका था... तब ही महाराजा विक्रमादित्य ने देखा कि आकाश मार्ग से वट वृक्ष उतर रहा है.... कामेदी उस वृक्ष से नीचे उतरी और सीधे अपने पति के खंड में आ गई....। विक्रम ने कहा- महात्मन् ! आपकी पत्नी ने आपको और आपके सभी शिष्यों को बलि देने का निश्चय किया है... मैं समझता हूँ कि आप अपनी पत्नी के बाहरी रूप और आचरण से मुग्ध बने हुये हैं इसलिये आप उसके विषय में कोई संशय नहीं कर सकते। पंडित जी ने देखा- उपखंड में प्रकाश फैल रहा था, जिसमें सामने एक पलंग पड़ा था। अन्दर के दृश्य को देखकर पंडित जी स्तब्ध रह गये... हृदय की धड़कनें बढ़ गईं। कामेदी निरावरण हो चुकी थी और वह काले रंग का पुरुष भी निर्वस्त्र था... वे दोनों पलंग पर बैठे थे, जिनके मध्य में भोजन सामग्री के साथ मदिरा पात्र भी रखे थे। जिस स्त्री को समूचा समाज एक पतिव्रता के रूप में पूजता था... वही उस काले व्यक्ति से कह रही थी... ऐसा कब तक चलेगा... स्थाई व्यवस्था
विक्रमादित्य । Vikramaditya
Damodarlal Garg