मारवाड़ के वीर सपूत कल्ला राठौड़ को मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह ने उसकी योग्यता और प्रतिभा को परखकर रनेला व छप्पन परगना का जागीरदार नियुक्त किया।
रनेला जाते समय वर्षा के कारण मार्ग में शिवगढ़ में रुकना पड़ा जहाँ संयोगवश शिवगढ़ के महाराजा राव कृष्णदास की पुत्री राजकुमारी कृष्णकान्ता का आतिथ्य स्वीकार करना पड़ा तथा इसी दौरान दोनों अनायास ही एक-दूसरे के प्रति आकर्षित हुए तथा वरण का निश्चय किया।
कल्लाजी छप्पन परगने की व्यवस्था और राजकार्यों में व्यस्त होने से पुनः शिवगढ़ नहीं जा सके। इसी मध्य उन्होंने दस्यु मुखिया पेमला के साथ भौराईगढ़ का युद्ध करके उसके आतंक को समाप्त किया, जिसमें कृष्णकान्ता ने भी शौर्य प्रदर्शन किया।
राव कृष्णदास ने कृष्णकान्ता का वाग्दान कल्लाजी के साथ करना तय किया। कल्लाजी को बाबा भैरवनाथ की कृपा और योगविद्या से ज्ञात हो गया कि इस जन्म में कृष्णा के साथ विवाह संभव नहीं है। कृष्णकान्ता को भी ज्योतिषी ने बताया कि यदि यह विवाह हुआ तो वैधव्य झेलना पड़ेगा। फिर भी कृष्णकान्ता अपने निर्णय पर अडिग रही। कल्लाजी बारात लेकर तोरण पर पहुँचे। इसी बीच अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया। कल्लाजी तोरण मारे बिना सेना सहित चित्तौड़ पहुँचे तथा साहस और शौर्य का प्रदर्शन करते हुए मारे गए। उनका कबन्ध रनेला पहुँचा, जहाँ
वीरवर कल्लाजी राठौड़ । Veervar Kallaji Rathore
Prof. Mishrilal Mandot