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प्रायः जो वस्तु लौकिक साधारण वस्तुओं से अधिक सुन्दर या सुकुमार होती है उसे या तो मनुष्य अलौकिक और दिव्य की पंक्ति में बैठाकर पूजार्ह समझने लगता है या वह तुच्छ समझी जाकर उपेक्षा और अवहेलना की भाजन बनती है। अदृष्ट की विडम्बना से भारतीय नारी को दोनों ही अवस्थाओं का पूर्ण अनुभव हो चुका है। वह पवित्र देव मन्दिर की अधिष्ठात्री देवी भी बन चुकी है और अपने गृह के मलिन कोने की बन्दिनी भी। कभी जिन गुणों के कारण उसे समाज में अजस्त्र सम्मान और अतुल श्रद्धा मिली, जब प्रकारान्तर से वे ही त्रुटियों में गिने जाने लगे तब उसे उतनी ही मात्रा में अश्रद्धा और अनादर भी, अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानकर स्वीकार करना पड़ा। उसे जगाने का प्रयास करने वाले भी प्रायः उसी सन्देह में पड़े रहते हैं कि यह जाति सो रही है या मृतक ही हो चुकी है जिसकी जागृति स्वप्नमात्र है।

शृंखला की कड़ियाँ | Shrankhala Ki Kadiyan

SKU: 9788180313059
₹199.00 Regular Price
₹179.10Sale Price
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  • Mahadevi Verma

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