top of page
Product Page: Stores_Product_Widget

यह पुस्तक 19वीं सदी में यूरोप में नई कविता का जो प्रवर्तन हुआ, उस पर विचार-विमर्श की एक व्यापक जमीन तैयार करती है। साथ ही, उसके परिप्रेक्ष्य में भारतीय कविता के विकास-क्रम में शुद्धता का पैमाना क्या रहा, और क्या होना चाहिए, इस पर भी अपना गम्भीर चिन्तन प्रस्तुत करती है। इसे इस तरह भी कह सकते हैं कि यह पुस्तक शुद्धतावादी आन्दोलन का एक दुर्लभ शोधपूर्ण इतिहास भी है और दस्तावेज भी। दिनकर जी का मानना है कि नई कविता हमेशा शुद्ध कविता नहीं होती, न सभी श्रेष्ठ काव्य शुद्ध काव्य के उदाहरण होते हैं। फिर भी उन्हें लगता है कि शुद्धता को लक्ष्य मानकर चलने से काव्य का नया आन्दोलन समझ में कुछ ज्यादा आता है। इसलिए उन्होंने ‘कविता और शुद्ध कविता’, ‘शुद्ध कविता का इतिहास-1’, ‘शुद्ध कविता का इतिहास-2’, ‘कविता में दुरूहता’, ‘शुद्ध काव्य की सीमाएँ’, ‘परिभाषाहीन विद्रोह’, ‘मनीषी और समाज’, ‘कला में व्यक्तित्व और चरित्र’, ‘कला का संन्यास’ और ‘साहित्य में आधुनिक बोध’ पाठों के जरिए जहाँ-तहाँ से सामग्रियाँ बटोरकर शुद्धतावादी आन्दोलन का इतिहास खड़ा किया है और कविता की अनेक समस्याओं पर अपने दृष्टिकोण से विचार किया है। दिनकर जी ने अपनी यह किताब बीसवीं सदी के सातवें दशक में इस उद्देश्य से लिखी थी कि हिन्दी के जो लेखक, कवि और पाठक अंग्रेजी अथवा किसी अन्य विदेशी भाषा के द्वारा पाश्चात्य साहित्य के सीधे सम्पर्क में नहीं हैं, वे इसका लाभ उठा सकें, उनसे बातचीत का एक ठोस जरिया बनाया जा सके। शुद्धतावाद के केन्द्र में लिखी गई यह पुस्तक अपने विशद-विवेचन के कारण पचास साल बाद भी वही महत्त्व रखती है, जो उस समय रखती थी।

शुद्ध कविता की खोज | Shuddh Kavita Ki Khoj

SKU: 9789389243871
₹299.00 Regular Price
₹269.10Sale Price
Out of Stock
  • Ramdhari Singh Dinkar

No Reviews YetShare your thoughts. Be the first to leave a review.

RELATED BOOKS 📚 

bottom of page