असुरक्षा से घिरे वन में, क्या आनंद के माध्यम से मानवता की खोज करना संभव है? क्या हम एक-दूसरे को शिकारी, शिकार, बैरी या साथी के रूप में न देखते हुए प्रेमियों के
रूप में अपनी तलाश कर सकते हैं?
क्या दैवीय तत्त्व ऐंद्रिक सुख, भावात्मक अंतरंगता व सौंदर्य के अनुभव में बसा है?
हां, हां, अवश्य। यही भागवत का वचन है।
श्याम : भागवत का सचित्र पुनर्कथन | SHYAM : Bhagwat Ka Sachitra Punarkathan
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Devdutt Pattnayak
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