“ राम के नाम को अपने होंठों के द्वार पर रत्नजड़ित दीपक की तरह रखने से भीतर तथा बाहर दोनों ओर प्रकाश रहेगा। जो यह नाम ध्यानमग्न होकर बार-बार लेंगे, वे अलौकिक शक्तियाँ हासिल करेंगे। जो पीड़ा से त्रस्त होने पर इसका जाप करेंगे, वे सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति पाएंगे। जो पूर्ण आस्था और निर्लिप्त भाव के साथ बार-बार इसका स्मरण करेंगे, वे प्रभु की असीम कृपा प्राप्त करेंगे।”
- श्री तुलसीदास कृत रामचरित मानस से
वनमाली ने महान कवि वाल्मीकि के मूल संस्कृत शब्दों के प्रयोग और मौखिक परंपरागत कथाओं से परिष्कृत करके प्राचीन भारत के प्रेम, कर्तव्य और बलिदान की कथा रामायण को आधुनिक पाठकों के लिए पुनर्वर्णित किया है। विष्णु के सातवें अवतार, भगवान रामचंद्र के जीवन और धर्म के विवरण द्वारा उन्होंने बताया है कि राम ने किस प्रकार धर्म के प्रति सत्यनिष्ठ रहते हुए दिव्यता प्राप्त की। अमंगलकारी शक्तियों के विरुद्ध राम का युद्ध, साहस और निष्ठा, आध्यात्मिक भ्रम एवं मिथ्या आसक्ति तथा मानवीय व दिव्य प्रेम की क्षमता का सशक्त उदाहरण प्रस्तुत करता है।
इस अमर कथा की गूढ़ विचारधारा तथा श्रेष्ठ ज्ञान को साधकर लेखिका ने यह बताया है कि राम के पात्र ने किस तरह हज़ारों वर्षों से भक्तों को मोहित किया हुआ है, क्योंकि उनकी कथा उस सनातन सत्य को दर्शाती है जो मानव स्वभाव के श्रेष्ठ गुणों को आकर्षित करता है। वे इस बात को उजागर करती हैं कि यद्यपि राम विष्णु के अवतार हैं, तथापि उनके भीतर भी आसक्ति, कामनाएँ एवं क्रोध जैसी मानवीय दुर्बलताएं मौजूद हैं। उनकी महानता इस बात में निहित है कि वे इन चारित्रिक दुर्बलाताओं से ऊपर उठे, अपने आध्यात्मिक कर्तव्य क
श्री राम लीला | Shree Ram Lila
Vanmali