कथा संग्रह 'सूना आँगन' की कहानियाँ व्यक्ति के अपने ही आसपास घटित संदर्भों और चरित्र बिंबों के होने का अहसास कराती है। समाज और व्यक्ति से जुड़े विभिन्न संदर्भों की संभावनाओं का दृढ़ता से प्रतिनिधित्व करती है। इनमें संयुक्त परिवार की टूटन, बिखराव, भ्रष्टाचार, अनैतिकता के तीव्र तीखे दंश और इन सबके बीच उपजती अपसंस्कृति, उपभोक्तावाद का सम्मोहन, घटिया मानसिकता, नारी जीवन की जटिलताएँ और विवशतायें, खंडित होते नैतिक मूल्य, समाज में व्याप्त विषमतायें कहीं स्मृति के दंश की पीड़ा का अहसास देती है, तो कहीं रिश्तों के दंश चुभते हैं। कहीं स्वार्थपरता का उत्पीड़न है, तो कहीं बेरोजगारी से त्रस्त छटपटाहट। कहीं पुत्र चाह में तड़पता सूना आँगन हृदय को गहरी टीस का अहसास देता है, तो वहीं नारी की दृढ़ता और साहस मन के 'सूना आँगन' को संबल प्रदान कर खुशी के रंग बिखेर देता है।
इस कथा संग्रह की कहानियों का सृजन इन्हीं संदर्भों से भरा है। मुझे विश्वास है सृजन की चेतना का यह स्पंदन आपको निराश नहीं करेगा। अच्छा लगेगा।
सूना आंगन | Soona Aangan
Author
Prahlad Singh Rathore
Publisher
Sahitya Niketan
No. of Pages
116