‘हमसफ़र एवरेस्ट’ एक यात्रा-वृत्तांत है, एवरेस्ट बेस कैंप के साथ-साथ गोक्यो झीलों का भी।नेपाल में भारतीयों के लिए किसी वीज़ा-पासपोर्ट की आवश्यकता नहीं होती, तब भी वह है तो विदेश ही। अलग करेंसी, अलग टाइम-ज़ोन, अलग नेटवर्क, अलग भाषा, अलग खान-पान। इन सबके बीच एक भारतीय दंपत्ति ने किस तरह तालमेल बैठाया, यह पढ़ना आपको रोमांचक अवश्य लगेगा। अपनी मोटरसाइकिल से सीमा पार करना, सड़क ही समाप्त हो जाने तक मोटरसाइकिल चलाते रहना, फिर इसे एक गुमनाम-सी जगह पर छोड़कर एक लंबी पदयात्रा यानी ट्रैकिंग करना। परंपरागत रूप से यात्री काठमांडू से लुकला तक हवाई-जहाज से जाते हैं, लेकिन लेखक ने थल-मार्ग चुना। और थल-मार्ग भी ऐसा जिसके बारे में ज्यादातर ट्रैकर्स को नहीं पता होता। लेखक और उनकी पत्नी (सहयात्री) को भी नहीं पता था, लेकिन नियति को जो मंज़ूर था, होता चला गया। और रोमांचक बनता गया।हिंदी में एवरेस्ट चोटी के वृत्तांतों की कुछ पुस्तकें उपलब्ध हैं, लेकिन ख़ासकर बेस कैंप ट्रैक से संबंधित कोई किताब नहीं है। हर साल दुनिया भर से हज़ारों ट्रैकर्स एवरेस्ट बेस कैंप जाते हैं। भारत से भी बहुत जाते हैं। जाने से पहले प्रत्येक ट्रैकर के मन में बहुत सारे प्रश्न आते हैं, बहुत सारी बातें आती हैं, जो प्रायः अनुत्तरित ही रह जाते हैं। यह किताब ऐसे यात्रियों की प्रत्येक जिज्ञासा का समाधान करती है।
हमसफ़र एवरेस्ट | Humsafar Everest
Neeraj Musafir